परमात्मा को पाने की पुकार बन जाता है जप

शरीर सद्कर्मो और मन सद्विचारों से संवरेगा. सद्विचार संवरते है सिमरन से, सिमरन के लिए शब्द-नाम की ताकत चाहिए. नाम महिमा के लिए गुरुनानक देव ने कहा है 'शब्दे धरती, शब्द अकास, शब्द-शब्द भया परगास.सगळी सृस्ट शब्द के पीछे, नानक शब्द घटे घट आछे.' इस शब्द ने धरती, सूर्य, चंद्रमा सारी दुनिया पैदा की है. यही शब्द सबके भीतर अपनी धुनकारें दे रहा है. इस नाम की खोज की जाये जो सबके भीतर है. सभी संत-फकीरों ने अध्यात्म को समझने के लिए अपने-अपने शब्द दिए है जो बाद में नाम-वंदना बन गए. गुरुनानक साहिब ने इसे गुरुबानी, सचिवाने, अकथ-कथ, हुकुम, हरी कीर्तन कहा है. ऋषि मुनियों ने इसे कभी आकाशवाणी कहा तो कभी रामधुन. चीनी गुरुओं ने ताओ, मुस्लिम फकीरों ने कलमा बताया. ईसा मसीह इसे लोगास बता गए.लेकिन फकीरों ने जो शब्द बताया है, इसे हम केवल ऐसे शब्दों से ना जोड़े ले जो जबान से निकलते है.हमारे शरीर के भीतर नाम अपनी एक अलग अनुभूति रखते है. जब हम ध्यान करते है तो ये नाम या गुरुमंत्र केवल बोलने के शब्द बनकर नहीं बल्कि पुरे ध्यान में अपना नांद देते है, गूँज ध्वनि देते है. यह भीतरी अनुगूंज हमें गहरे ध्यान में उतरती है. कई लोगों को तो गुरुनानक साहिब के वाहेगुरु संबोधन ने भी ध्यान में उतार दिया. यह नाम जप एक पुकार बन जाता है. परमात्मा को पाने के लिए हम जब आतुर होते है और उस आतुरता में जो शब्द उच्चारित होते है, वे नाम जप बन जाते है. निरंतरता बनाये रखिये, एक दिन परमात्मा आपको मिल ही जायेगा |