भगवत्प्राप्ति के तत्व

१ अहिंसा - मन वाणी और शरीर से किसी प्रकार से भी किसी को दुःख न देना ।

२. सत्य  - मन और इन्द्रियों के द्वरा जैसा निश्चय किया हो, वैसा का वैसा ही प्रिय शब्दों में कहना ।

३. अस्तेय - चोरी का सर्वथा आभाव ।

४. ब्रह्मचर्य - सभी प्रकार के मैथुनों का आभाव ।

५. अपैशुनता - किसी की निंदा न करना ।

६. लज्जा / अमानित्व - सत्कार, मान और पूजा आदि का ना चाहना ।

७. निष्कपटता एवं शौच -  बाहर एवं भीतर की पवित्रता । ( सत्यता पूर्वक शुद्ध व्यवहार से द्रव्य की और उसके अन्न से आहार की एवं यथायोग्य बर्ताव से आचरणों की और जल मिट्टी आदि से शरीर  की शुद्धि को तो बाहर की  शुद्धि एवं राग द्वेष तथा कपट आदि विकारों का नाश होकर मन का  स्वच्छ एवं शुद्ध हो जाना भीतर की शुद्धि कहलती  है । )

८. संतोष - तृष्णा का सर्वथा आभाव ।

९. तितिक्षा - शीत ऊष्ण  सुख दुःख आदि द्वंदों को सहन करना ।

१० सत्संग सेवा यज्ञ दान तप - स्वधर्म पालन के लिए कष्ट सहना ।

११ स्वाध्याय - वेद और सत - शास्त्रों का अध्यन एवं भगवान के गुणों  का कीर्तन ।

१२.शम - मन का वश में होना ।

१३ दम - इन्द्रियों का वश में होना ।

१४.विनय / आर्जव - शरीर एवं इन्द्रियों सहित मन की सरलता ।

१५ दया - दुखियों में करूणा ।

१६. श्रद्धा - वेद, शास्त्र, महात्मा, गुरु और परमेश्वर के वचनों में प्रत्यक्ष के सदृश्य विश्वास ।

१७ . विवेक - सत एवं असत पदार्थ का यथार्थ ज्ञान ।

१८ . वैराग्य - ब्रह्मलोक तक के सम्पूर्ण पदार्थों में आसक्ति का अत्यंत आभाव ।

१९. एकांतवास - शुद्ध देश का सेवन करते हुए एकांत में स्तिथि । 

२०. अपरिग्रह - ममत्व बुद्धि से संग्रह का आभाव

२१. समाधान - मन में संशय और विक्षेप का आभाव ।

२२. उपरामता , तेज - श्रेष्ठ पुरुषों की उस शक्ति का नाम तेज है की जिसके प्रभाव से विषयासक्त और नीच प्रकति वाले मनुष्य भी प्रायः पाप आचरण से रूककर उनके कथन अनुसार कर्मों में प्रवृत्त हो जाते हैं ।

२३।  क्षमा - अपना अपराध करने वालों को किसी प्रकार भी दंड देने का भाव न रखना ।

२४. धैर्य - भारी विपत्ति आने पर भी अपनी स्तिथि से चलायमान न होना ।

२५. अद्रोह - अपने साथ द्वेष रखने वालों से भी द्वेष न रखना ।

२६. अभय - सर्वथा भय का आभाव ।

२७. निरअहंकारता, शान्ति - मनोवृतियों और वासनाओं का अत्यंत आभाव होना और मन में नित्य-निरंतर प्रसन्नता का रहना ।