भीष्म पितामह द्वारा उल्लेखित कलियुग के दस महापाप

मानव जाने अनजाने में अनेक पाप करता है, कलयुग का ऐसा प्रभाव है की मनुष्य द्वारा कई पाप होने के बावजूद उसे मालूम ही नही होता की उसने कौन सा पाप किया है। भीष्म ने कहा था ये दस महापाप कलियुग में नित्य बढते जायेंगे कोई भी इनसे अछूता न रह पायेगा। महाभारत के अनुशाषण पर्व में पितामह भीष्म ने युद्धिष्ठर को चेताया था की दस पापों से हमेशा दूर रहना चाहिये, शरीर व इंद्रियों द्वारा होने वाले ये दस महापाप शरीर द्वारा तीन, वाणी द्वारा चार तथा मन द्वारा तीन प्रकार के होते हैं। जिनसे हमे नित्य बचना चाहिये।

शरीर द्वारा होने वाले पाप- शरीर द्वारा होने वाला प्रथम पाप हिंसा करना है। किसी भी प्रकार से जीवों के प्रति की गई हिंसा अथवा दूसरे को क्षति पहुंचाना शरीर द्वारा किया गया महापाप है। दूसरा पाप चोरी करना है, लालच में आकर या किसी अन्य स्थिति में की गई किसी भी प्रकार की चोरी पाप फल दायी होती है। व्याभिचार तिसरे प्रकार का महापाप माना गया है। जो स्त्रि-पुरुष भ्रष्ट होकर अनैतिक सम्बंध व भोग लिप्सा में लिप्त रहते हैं उन्हे नर्क में बडी यातनायें सहन करनी पडती हैं। यह मार्ग अत्यधिक निंदित व कुल के पुण्यों का भंजन करने वाला कहा गया है। इन पापों से मनुष्य को सावधान रहना चाहिये क्योंकी एक बार इन में फंस कर व्यक्ति का निकल पाना अत्यधिक जटिल है।

मुख व वाणी द्वारा होने वाले चार प्रकार के पाप- हमारे मुहं को हमारी सोच व हृदय का दरवाजा कहा गया है। दरवाजा खुलने के बाद ही ज्ञात हो पाता है की भवन के अंदर मोति है अथवा कूडा। हमारी अनियंत्रित वाणी किसी न किसी प्रकार के पाप में व्यक्ति को धकेलती रहती है। वाणी द्वारा होने वाले विभिन्न प्रकार के पाप है अनर्गल बात करना अर्थात व्यर्थ बकवास करना। व्यर्थ बकवास करने वाले को यही पता नही चलता की वह क्या कह रहा है और उसका प्रभाव किया होगा। दूसरा पाप दूसरों का अपमान करना है महाभारत में कहा गया है की आदरणीय लोगों का अपमान करना मृत्यु के समान होता है। अत: कभी भी किसी का अपमान नही करना चाहिये। तीसरे प्रकार का पाप झूठ बोलना है। झूठ बोलने से हमारे मनोविकार भी प्रभावित होते है झूठ बोलने के कारण ही हमारी आत्मा मलिन हो जाती है। झूठ बोलने के अनेक दोष हैं अत: इस महापाप से अपने को सदैव दूर रखने का प्रयास करना चाहिये। वाणी द्वारा होने वाला चौथे प्रकार का पाप दूसरों की चुगली करना हैं।

मन से होने वाले पाप- अनुशाषण पर्व के अनुसार मन से होने वाले तीन प्रकार के मुख्य पाप माने गये है। मानसिक रूप से दूसरों के धन के प्रति सोचना या उसे अपनाने के लिये किया गया चिंतन पाप की श्रेणी में आता है। दूसरों को अहित पहुंचाने के उद्देश्य से किये गये प्रयास भी मानसिक पाप की श्रेणी में आता है। तीसरे प्रकार का मानसिक पाप वासना है मन में वासना के प्रति अनेक प्रकार के कुत्सित विचार व्यक्ति के पतन का बडा कारण बनते हैं।